17-12-79  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

होली हंस और अमृतबेला रूपी मानसरोवर

आज चारों ओर के रूहानी हंसों वा होली हंसों के संगठन को देख रहे हैं। सभी होली हंस सदा ज्ञान रतन ग्रहण करते और कराते हैं। हँसों का भोजन अमूल्य मोती होते हैं। ऐसे ही आप सब होली हँसों के बुद्धि का भोजन ज्ञान रतन है। अमृतबेले से बापदादा के साथ रूह-रूहान द्वारा, रूहानी मिलन द्वारा ज्ञान रतनों को धारण व्रते हो। शक्तियों को धारण करते हो। ऐसे ही सारा दिन मनन शक्ति द्वारा धारण किये हुए रत्नों को व शक्तियों को अपने जीवन में धारण कर और औरों को कराते हो।

अमृतबेले मिलन मनाने की शक्ति, ग्रहण करने अर्थात् धारण करने की शक्ति, बाप द्वारा हर रोज के विशेष शुद्ध संकल्प रूपी प्रेरणा को केच करने की शक्ति सबसे ज्यादा आवश्यक है। अमृतबेले के समय हरेक धारण करने की शक्ति द्वारा धारणामूर्त बन जाते हैं। अमृतबेले विशेष दो मूर्तियाँ चाहिए - एक धारणामूर्त्त दूसरा अनुभवि मूर्त्त। क्योंकि अमृतबेले बाप-दादा विशेष बच्चों के प्रति दाता के स्वरूप और मिलन मनाने के लिए सर्व सम्बन्धों के स्नेह सम्पन्न स्वरूप, सर्व खज़ानों से झोली भरने वाले भोले भण्डारी के रूप में होते हैं। उस समय जो भी करना चाहो, बाप को मनाना चाहो, रिझाना चाहो, सम्बन्ध निभाना चाहो, सहज विधि का अनुभव चाहो, सर्व विधियाँ और सिद्धियाँ सहज प्राप्त कर सकते हो। प्राप्ति के भण्डार और देने वाला दाता सहज ही प्राप्त हो सकता है। सर्व गुणों की खानें, सर्व शक्तियों की खानें बच्चों के लिए खुली हैं। अमृतबेले के एक सेकेण्ड का अनुभव सारे दिन और रात में सर्व प्राप्ति के स्वरूप के अनुभव का आधार है। बाप दादा भी हरेक को जी-भर करके बातें करने के लिए, फरियाद सुनने के लिए, कमज़ोरी मिटाने के लिए, अनेक प्रकार के पाप बख्शाने के लिए, लाड़-प्यार देने के लिए सब बातों के लिए फ्री हैं। वह समय ऑफीशीयल नहीं है। भोले-भण्डारी के रूप में हैं। इतना गोल्डन चान्स होते हुए भी कोई बच्चे चान्स ले रहे हैं। और कोई किनारे चान्स लेने वालों को देख रहे हैं। क्यों चाहना भी है फिर भी क्यों बीच में क्या रूकावट है - उसको जानते हो?

चाहते हुए भी प्राप्तियों से वंचित क्यों?

माया भी बड़ी चतुर है। विशेष उस समय बाप से किनारे करने के लिए आ जाती है। विशेष बहाने बाज़ी के खेल में बच्चों को रिझा लेती है। जैसे बाज़ीगर अपनी बाज़ी में लोगों को आकर्षित कर लेते हैं, वैसे माया भी अनेक प्रकार के अलबेलेपन, आलस्य और व्यर्थ संकल्पों की बहाने बाज़ी में रिझा लेती है। इसलिए गोल्डन चान्स को गँवा लेते हैं। और फिर ऐसे समय को गँवाने के कारण सहज प्राप्ति से वंचित होने के कारण सारा दिन का कमज़ोर फाउन्डेशन हो जाता है। सारे दिन में चाहे कितना भी पुरूषार्थ करें लेकिन सारे दिन की आदि अर्थात् फाउन्डेशन समय कमज़ोर होने के कारण मेहनत ज्यादा करनी पड़ती, प्राप्ति कम होती हैं। प्राप्ति कम होने के कारण दो प्रकार की अवस्था का अनुभव करते हैं। एक तो चलते-चलते थकावट अनुभव करते हैं, दूसरा चलते-चलते दिल शिकस्त हो जाते हैं। और फिर क्या सोचते हैं। ना मालूम मंजिल पर कब पहुँचेंगे? समय नज़दीक है या दूर है? कब प्रत्यक्षता होगी और सतयुगी सृष्टि में जावेंगे? यह प्रवृत्ति के बन्धन कब तक रहेंगे? वर्तमान की प्राप्ति को छोड़ भविष्य को देखते हैं।

प्राप्ति का सहज साधन

वर्तमान प्राप्ति की लिस्ट सदा सामने रखो, ‘तो कब होगा’ यह खत्म होकर हो रहा है में आ जायेंगे। दिल शिकस्त होने के बजाए दिल-खुश हो जावेंगे। वर्तमान से किनारा नहीं करो। माया की बहानेबाज़ी को पहचानो। माया बहाने में आप को राज़ी कर देती हैं। इसलिए बाप को रिझा नहीं सकते हो अर्थात् सहज साधन अपना नहीं सकते हो। वरदान के रूप में जो प्राप्ति करनी चाहिए उसकी बजाए मेहनत कर प्राप्ति करने में लग जाते हो। इसलिए अमृतबेले की सहज प्राप्ति की बेला को जानते हुए उसका लाभ उठाओ। खुले भण्डारों से प्रारब्ध की झोली भर लो वरदाता और भाग्य विधाता से अमृतबेले के समय जो तकदीर की रेखा खिंचवाना चाहो, वह खींचने के लिए तैयार हैं। तकदीर की रेख वरदाता से सहज व श्रेष्ठ खिंचवा लो। उस समय यह भोले भगवान के रूप में हैं लवफुल है तो लव के आधार से श्रेष्ठ लकीर खिंचवा लो। जो चाहे, जितने जन्मों के लिए चाहे, चाहे अष्ट रत्नों में चाहे 108 की माला में, बाप-दादा की खुली आफर हैं - और क्या चाहिए!

मालिक बनो और अधिकार लो। कोई भी खज़ाने पर तालाचाबी नहीं है। मेहनत की चाबी नहीं है। नहीं तो फिर सारे दिन में मेहनत को चाबी लगानी पड़ती है, उस समय सिर्फ एक संकल्प करो कि जो भी हूँ जैसी भी हूँ, आपकी हूँ। माया की बाज़ी को पार कर साथ में आकर के बैठ जाओ। बस। यह माया की बाज़ी साइडसीन है। उनमें रूकना नहीं। आ जाओ और बैठ जाओ। संकल्प और बुद्धि अर्थात् मन और बुद्धि बाप के हवाले कर दो। यह करना नहीं आता? बाप की दी हुई वस्तु बाप को देने में मुश्किल क्यों? कभी तेरी कभी फिर मेरी कहते हो इस तेरी मेरी के चक्र में आ जाते हो अमृतबेला हुआ ऑख खुली और सेकेण्ड में जम्प लगाकर बाप के साथ बैठ जाओ। साथ के कारण जो बाप के खज़ाने सो आपके खज़ाने अनुभव होंगे। नालेज़ के आधार पर नहीं लेकिन प्राप्ति के आधार पर। अधिकार के तख्त पर बैठे हुए होने के कारण अधिकारी पन का अनुभव होगा। तो बाप खुदा दोस्त के रूप में अधिकार का तख्त ऑफर कर रहे हैं। उठो और तख्त पर बैठ जाओ। थोड़े समय के अधिकार के तख्त निवासी होने से भी जो चाहो वह बना सकते हो। जैसे हद के राजा थोड़े समय की राजाई क्या अधिकार में नहीं कर लेते हैं? अब बेहद तख्तनशीन इस गोल्डन समय पर वर्तमान समय सहज ही अपनी गोल्डन एज स्थिति बना सकते हो। और भविष्य गोल्डन एज दुनिया में श्रेष्ठ पद प्राप्त कर सकते हो। समझा, सहज पुरूषार्थ का समय और सहज साधन। फिर सहज को छोड़ मुश्किल में क्यों जाते हो? अब सहज पुरूषार्थ बनेंगे या मुश्किल? जब बाप सहज मिला तो मार्ग मुश्किल कैसे होगा! सहज पुरूषार्थ बनो। मुश्किल का नाम-निशान खत्म करो तो दुनिया की मुश्किलातों को खत्म कर सकेंगे।

ऐसे सदा अधिकारी, तख्तनशीन, माया की बाज़ी से अपने को सदा पास रखने वाले, सदा बाप के राज़ो को जानने वाले, ‘मेहनत’ शब्द को ‘मोहब्बत में परिवर्तन करने वाले, दिलशिकस्त के बदले दिल-खुश रहने वाले, अपने दिल-खुश से जहान को खुश करने वाले ऐसे सदा बाप के साथ रहने वाले सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।

पार्टियों के साथ

1. मन्सा सेवा का सहज साधन अटूट निश्चय :- जो भी सदा निश्चय बुद्धि होकर विजयी रहते हैं, उन निश्चय बुद्धियों द्वारा वायुमण्डल शुद्ध होता जाता है। वह मन्सा सेवा करते हैं क्योंकि चारों ओर के व्यक्ति निश्चय बुद्धि आत्माओं को देख समझते हैं कि इनको कुछ मिला है। चाहे कितना भी घमण्डी हों, ज्ञान को न भी सुनते हों लेकिन अन्दर में यह समझते जरूर हैं कि इनका जीवन कुछ बना है। तो जो शुरू से अटल निश्चय बुद्धि रहे हैं। उनकी यह सेवा चलती रहती है। यह भी मन्सा सेवा है।

2. माया से सेफ रहने का साधन - अटेन्शन रूपी चौकीदार सुजाग रहे :- सभी सदा स्वदर्शन चक्रधारी बनकर चलते हो? सदा अपना स्व-स्वरूप, स्व-दर्शन चक्रधारी का याद रहता है? जो सदा स्वदर्शनचक्रधारी हैं वह अनेक प्रकार के माया के चक्र से सदा मुक्त रहते हैं। एक स्वदर्शनचक्र अनेक व्यर्थ चक्रों को खत्म करने वाला है, माया को भगाने वाला है। स्वदर्शन चक्रधारी के आगे माया ठहर नहीं सकती। स्वदर्शनचक्रधारी सदा सम्पन्न होने के कारण अचल रहते हो। ऐसे सदा सम्पन्न अर्थात् मालामाल रहने वाले हो? माया खाली करने की कोशिश करती है लेकिन जो सदा खबरदार है, सुजाग है, जागती ज्योति है तो माया कुछ नहीं कर पाती। अटेन्शन रूपी चौकीदार सुजाग हों तो सदा सेफ रहेंगे। तो सदा जागती ज्योत बनो इसीलिए यादगार मन्दिरों में भी अखण्ड ज्योति जगाते हैं। बुझने नहीं देते। अखण्ड ज्योति जगाने का फैशन पड़ा कहाँ से? संगम पर तुम सब चेतना में जागती ज्योति बने हो तभी यह यादगार चला आता है। अगर खण्डन हो जाती हैं तो बुरा मानते हैं। तो चैतन्य में आप सब क्या हैं? अखण्ड ज्योति, खण्डित चीज़ कभी भी पूज्य हो नहीं सकती।

सार :- अमृतबेले के एक सेकेण्ड का अनुभव सारे दिन और रात में सर्व प्राप्ति के स्वरूप के अनुभव का आधार है। अमृतबेला का समय आफीशल नहीं है बाप भोले भण्डारी के रूप में है। हर प्रकार के पाप बख्शाने के लिये, कमज़ोरी मिटाने के लिए सब बातों के लिये बाप फ्री है।